चोटी की पकड़–3

जागीरदार साहब कुलीन हैं। साथ ही राजसी ठाट के धनिक। 


इनके यहाँ मान्यों की वह मान्यता नहीं रहती जो दूसरी जगह रहती है।

 यद्यपि इसका मुख्य कारण घमंड है, फिर भी ये अपनी बचत का रास्ता निकाले रहते हैं। 

इनका कहना है कि राज्य की मुहर रघुनाथजी के नाम है, हम उनके प्रधान कर्मचारी हैं। 

हमारे सिर पर केवल रघुनाथजी ही रहते हैं; दूसरे अगर इस राज्य की हद में हमारे सिर हुए तो वही जैसे इस राज्य के राजा बन गए; इससे रघुनाथजी का अपमान होता है। 

इस आधार पर जल्सों में जागीरदार साहब के मान्यों के आसन उनके पीछे ही रखे जाते हैं, हल्के आसनों पर, बगल में भी नहीं।

आने पर बुआ की सेवा के लिए रानी साहिबा ने एक बाँदी भेजी, नाम मुन्ना। 

रानी साहिबा की प्रायः दस दासियों में एक मुन्ना भी। पाँच छः साल से नौकर। हाल का ब्याह, खातिरदारी कसरत पर और कुछ इस उद्देश्य से भी कि ऐसा दूसरा नहीं कर सकता, इतना सुख कहीं भी नहीं।

 मुन्ना की उतनी ही उम्र है जितनी बुआ की। उतनी ऊँची नहीं, पर नाटी भी नहीं। चालाकी की पुतली। 

चपल, शोख। श्याम रंग। बड़ी-बड़ी आँखें। बंगाल के लंबे-लंबे बाल। विधवा, बदचलन, सहृदय। प्रायः हर प्रधान सिपाही की प्रेमिका। भेद लेने में लासानी। 

कितने ही रहस्यों की जानकार। प्रधान-अप्रधान नायिका, दूती, सखी।

 रानी साहिबा ने जब-जब रंडी रखने के जवाब में पति को प्रेमी चुनकर झुकाया, तब-तब मुन्ना ने प्रधान दूती का पाठ अदा किया। 

उसी से रानी साहिबा को खबर मिली, बुआ की नाक कटी है, गाल पर दाँतों के दाग हैं।

 अनुगामिनी सहचरी बनाने का इतना साधन काफी है। रानी साहिबा ने समधिन को बुलाया।

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